Rural India
एफपीओ की ताकत सें बढ़े किसान
एफपीओ को 15 लाख रुपए तक की मदद दी जाएगी। सरकार द्वारा किसान उत्पादक संगठनों को बढ़ावा देना सराहनीय कदम है। 2019 के अंतरिम बजट में पिछली मोदी सरकार द्वारा 10 हजार नए किसान उत्पादक संगठनों को अगले 5 वर्ष में बनाने का प्रावधान किया गया था।

By Ashok Babu
NEW DELHI: देश में छोटे और सीमांत किसानों की संख्या 86 फीसदी है जिनके पास औसतन 1.1 हेक्टेयर से कम जोत है, जो आर्थिक कमजोरी की वजह से फसल का सही मूल्य नहीं ले पाते है। किसानों को फसल का उचित मूल्य कैसे मिले इसके लिए किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) एक अच्छे विकल्प के तौर पर उभर रहा है। आज किसान की जरूरत है कि फसल उगाने के साथ व्यापार भी करें। एफपीओ के माध्यम से किसान अपने उत्पाद का मूल्य संवर्धन कर सकता है साथ ही बाजार तक बेहतर पहुंच बनाने के साथ अपनी आमदनी बढ़ा सकता है। साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के संकल्प के साथ केंद्र सरकार आगे बढ़ रही है।
किसान सम्मान निधि योजना की पहली वर्षगांठ के अवसर पर पीएम मोदी ने 10 हजार किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) का शुभारंभ उत्तर प्रदेश के चित्रकूट से किया जिसमें किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के लिए 5 साल में 5 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। ब्लॉक स्तर पर कम से कम एक किसान उत्पादक संगठन का गठन किया जाएगा जिसमें महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। एफपीओ को 15 लाख रुपए तक की मदद दी जाएगी। सरकार द्वारा किसान उत्पादक संगठनों को बढ़ावा देना सराहनीय कदम है। 2019 के अंतरिम बजट में पिछली मोदी सरकार द्वारा 10 हजार नए किसान उत्पादक संगठनों को अगले 5 वर्ष में बनाने का प्रावधान किया गया था।
एफपीओ एक किसानों का संगठन होता है जिसका नियंत्रण सरकारी तंत्र नाबार्ड और लघु कृषक व्यापार संघ यानि स्मॉल फार्मरस अग्री-बिजनस कंसोर्टियम (SFAC) के द्वारा नियंत्रित किया जाता है। कम से कम 10 किसान मिलकर एफपीओ बना सकते हैं अधिकतम संख्या कितनी भी हो सकती है। किसान समूह में जुड़ेंगे तो ज्यादा ताकत होगी क्योंकि भारतीय किसान अपने उत्पाद की कीमत तय नहीं करता है मार्केट में बैठे दूसरे लोग करते हैं जिससे फसल का अच्छा दाम नहीं मिल पाता है। एफपीओ के माध्यम से किसान सीधे अपने उत्पाद को बाजार में मोल तोल के साथ बेच सकते है जितनी कमाई होगी उसे सभी किसानों में बराबर बांट दिया जाता है। किसान एफपीओ से जुड़कर बिचौलियों को औने पौने दाम में फसल को बेचने से बच सकते हैं।
नाबार्ड और एसएफएसी संगठन को मार्केट एक्सेस यानी बाजार की उपलब्धता प्रदान कराते हैं साथ ही उत्पाद की ग्रेडिंग, पैकेजिंग और लेब्लिंग को सिखाने में सहायता करते हैं जिससे किसान अपने उत्पाद का मूल्य संवर्धन कर सकते हैं। किसानों की आमदनी बढ़ाने में एफपीओ कंपनियां महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। एफपीओ कंपनी का रजिस्ट्रेशन कंपनी अधिनियम 1956 एक्ट के तहत किया जाता है। जिसमें 5 बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की जरूरत होती है जिनके पास पेन कार्ड, आधार कार्ड, बैंक स्टेटमेंट के साथ किसान होने का प्रमाण होना अनिवार्य होता है। एफपीओ कंपनी को कोर्पोरेट टैक्स की छूट रहती है। एफपीओ के माध्यम से किसान खाद, बीज, दवाईयां और कृषि उपकरण किफायती दर पर खरीद सकता है।
2014 से 2018 के बीच 551 एफपीओ कंपनियों का गठन किया गया है इसके अंतर्गत लगभग 7.52 लाख लघु मध्यम और सीमांत किसानों को जोड़ा गया है। वर्तमान में 2154 एफपीओ को नाबार्ड द्वारा और 822 एफपीओ को SFAC के द्वारा प्रमोट किया जा रहा है। एफपीओ को इलेक्ट्रॉनिक-राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) के साथ सीधा जोड़ने का प्रावधान किया जा रहा है। सरकार का अनुमान है कि 2020 के अंत तक 1000 मंडियों को ई-नाम से जोड़ा जाएगा। 585 मंडियों को ई-नाम के पोर्टल से पहले ही जोड़ दिया गया है। ई-नाम के माध्यम से किसान अपनी फसल को मोबाईल या कम्पयूटर के द्वारा ऑनलाइन बेच सकते है।
किसान उत्पादक संगठनों के शुभारंभ के मौके पर प्रधानमंत्री ने संबोधित करते हुए कहा कि यूपी में 100 मंडियों को ई-नाम से जोड़ा गया है। ई-नाम से अब तक एक लाख करोड़ का व्यापार किया जा चुका है। बजट 2020 में घोषित किसानों के लिए 16 सूत्रीय कार्यक्रम पर जोर दिया जा रहा है, जिसमें पंचायत स्तर पर कोल्ड स्टोरेज की सुविधा और ब्लॉक स्तर पर भंडारण गृह की सुविधा का प्रावधान किया गया है। फल, सब्जी, दूध को मंडी तक पहुंचाने के लिए किसान रेल की सुविधा पहली बार की गई है सरकार ग्रामीण रिटेल एग्रिकल्चर मार्केट पर काम कर रही है गांव की स्थानीय मंडियों को मुख्य मंडियों से जोड़ना आवश्यक है जिसके लिए 22 हजार हाटों को कृषि उपज मंडी समिति (APMC) से जोड़ा जा रहा है।
किसान उत्पादक संगठन यानि एफपीओ के बारे में किसानों तक सही जानकारी मिले इसके लिए सरकार को प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है। खाद बीज के मंहगें दौर में किसानों की आय में बढ़ोत्तरी के लिए एफपीओ एक सार्थक पहल साबित हो सकता है।